चोटी की पकड़–68
"प्रभाकर ही आपसे मिलेगा।"
राजा साहब को ताल कटती हुई-सी जान पड़ी। हृदय में कोई रो उठा, मगर बैठे रहे।
प्रभाकर ने बिदा माँगी। देर हो गई थी। उसके साथी अभी छूटे हुए थे। रहने के लिए उन्होंने संभवतः दूसरा कमरा दूसरे मकान में लिया हो। एक तरह से पकड़ा जाना ही समझना चाहिए। प्रभाकर सोचकर बहुत घबराया।
राजा साहब ने पालकी मँगा दी। प्रभाकर बैठे। राजा साहब ने अतिथि भवन में रखने की आज्ञा दी। दूसरे दिन सबेरे जगह पर भेजने के लिए कहा। दिलावर ने सुन लिया। प्रभाकर ने कहा, "मैं पता लेकर ही जाऊँगा। ये मेरी पूरी मदद करें। ऐसी आज्ञा दे दीजिए।"
राजा साहब ने दिलावर को बुलाकर हुक्म दे दिया।
एजाज के मन से संसार का प्रकट सत्य दूर हो गया। कल्पनादर्श में रहने की आकांक्षा हुई। प्रभाकर का ऐसा व्यक्तित्व लगा जैसा कभी न देखा हो। इसके साथ जिंदगी का खेल है, खिलाफ मौत का सामाँ।
अठारह